रघुवीर शरण

रघुवीर शरण
पानी के संस्मरण
Posted on 26 Sep, 2013 01:54 PM
कौंध : दूर घोर वन में मूसलाधार वृष्टि
दुपहर : घना ताल, ऊपर झुकी आम की डाल
बयार : खिड़की पर खड़े, आ गई फुहार
रात : उजली रेती के पार, सहसा दिखी
शांत नदी गहरी
मन में पानी के अनेक संस्मरण हैं

(1954)

हिलकोरे
Posted on 26 Sep, 2013 01:53 PM
हर रात समय की तिमिर नदी में एक लहर
जिस पर उजले सपने आते हैं छहर-छहर
नतशीश जिसे धारण करता रहता कगार
वह मानव जिसमें पत्थर की-सी क्षमता है
चुपचाप थपेड़ों को सह लेने की ताकत
लेकिन मिट्टी-सा घुल जाने की भी आदत
इसलिए लहर की अधिक उसी से ममता है।
सारा तूफान उसी पर आकर थमता है।
सच-झूठ तुम्हीं जानो मेरे इन स्वप्नों का
पर मेरे मन के विश्वासों की यह नौका
सरयू
Posted on 26 Sep, 2013 01:52 PM
(जन्म : 1884)
तरल-धार सरयू अलौकिक छटा से,
सुबह की सुनहरी गुलाबी घटा से,
झलक रंग लेती चली बुदबुदाती,
प्रभाकर की जगमग में जादू जगाती।
किस कंदरे से समीकरण हो उन्मन,
उठा मानों करता मधुप का-सा गुंजन,
प्रसूनों की गंधों को तन में लगाकर,
विपिन के गवैयों को सोते जगाकर,
मृदुल मस्त सीटी एकाएक सुनाकर,
सनासन चला ओर सरयू की धाकर,
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