राममूर्ति बबेले

राममूर्ति बबेले
‘सर्वोच्च देवि, ओ वेत्रवती’
Posted on 08 Dec, 2013 10:22 AM
तेरा अक्षय सौभाग्य सिंधु, प्रतिबिंबित जिसमें भानु-इंदु,
मणि है तारों के बिंब, अंब, नीले-पीले-पट पर आनंद-कंद।

श्रृंगार संजोए प्रकृति नटी, तुंग-तरंगिनि, मानवती।
ऊषा का शुभ सिंदूर दिए, कंघा, समीर का ललित लिए,
तट-विटप-केश को लहराकर, लख रही मांग, नभ-मुकुर किए।

ओ बन-वासिनि! ओ पुण्यवृती, पग-पग पर बढ़ हुई क्रांतिवती।।
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