प्रशान्त दुबे/रोली शिवहरे

प्रशान्त दुबे/रोली शिवहरे
कैसे कहें यह राष्ट्रीय तीर्थ है
Posted on 03 Apr, 2017 01:34 PM

कल एक बाँध तो देखा तो कसक जाग उठी।
एक तीर्थ बनाने में कितने घर डूबे होंगे।।
कौन मरा, कौन जिया, किसकी जमीनें डूबीं, कोई बहीखाता नहीं है यहाँ।
आज कौन है, कहाँ हैं, कोई नहीं जानता।
पर कल रिक्शा चलाते मिला था, एक आदमी सतना की सड़कों पर।
कुरेदा तो बताया कि बरगी से आया हूँ।
वो तो आज भी रहते हैं अंधेरे में ही
हाथ कटाने को तैयार
Posted on 03 Apr, 2017 01:22 PM

बरगी की कहानी
काली चाय का गणित
Posted on 02 Apr, 2017 03:36 PM

जब बाँध बनने की बात होती थी तो हम लोग हँसते थे कि जिस नर्मदा माई को भगवान नहीं बाँध पाये और जो अमरकंटक से निकलकर कल-कल बहती ही रही है, उसे कौन बाँध सकता है? और जब भगवान नहीं बाँध पाये तो नर्मदा विकास (प्राधिकरण) की क्या बिसात...?
विकास के विनाश का टापू
Posted on 02 Apr, 2017 01:18 PM

पूरे देश में रोजगार गारंटी की चर्चाएँ जोरों पर हैं। इस गाँव में भी लोगों के जॉब कार्ड तो हैं लेकिन वे पिछले तीन सालों से कोरे पड़े व्यवस्था को और ‘काम के अधिकार’ को चिढ़ा रहे हैं। यहाँ पर आज भी बिजली नहीं है, लोग इस बात से आस बँधा रहे हैं कि खम्भे तो आ गए हैं । पिछले 25 वर्षों में दूसरों को बिजली देने के कारण डूबे इन गाँवों में आज भी अन्धेरा है। यहाँ पर आजीविका का कोई साधन नहीं है, लोग पलाय
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