प्रेम पंचोली
ग्लोबल वार्मिंग - मानव और वन्य जीवों में बढ़ता संघर्ष
Posted on 20 Nov, 2016 11:41 AMबताया जा रहा है कि अधिकांश जंगली जानवर पानी की तलाश में बसासत की ओर रुख कर रहे हैं। पेयजल आपूर्ति ना होने पर वे आक्रामक हो रहे हैं। जिस कारण वन्य जीव व मानव में संघर्ष बढ़ रहा है।
माईक्रो क्लाइमेटचेंज तो बना नहीं और हिमयुग की सम्भावना जता दी
Posted on 18 Nov, 2016 02:51 PMजिस ग्लेशियर के आस-पास जोर से आवाज लगाना भी प्रतिबन्धित है उसी ग्लेशियर पास में ऐसे नव-नि
जल व वन संरक्षण की कहानी अधूरी, मगर ठिकाने लगता करोड़ों का बजट
Posted on 05 Nov, 2016 12:42 PM
उत्तराखण्ड हिमालय को ‘वन सम्पदा’ के लिये समृद्ध राज्य कहते हैं। होगा भी क्यों नहीं, यहाँ से गंगा और यमुना, काली और गोरी जैसी सदानीरा नदियों का उद्गम स्थल जो है। इन्हें तरोताजा करने के लिये यहाँ की ‘वन सम्पदा’ ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जी हाँ! जहाँ वन है वहीं प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता भी होती है।
बूँद-बूँद को सहेजना ही जल संकट का निदान
Posted on 03 Nov, 2016 03:16 PM
जानकारों का कहना है कि उत्तराखण्ड पहाड़ी राज्य में यदि सरकार व गैर सरकारी ढाँचागत कार्यों में वर्षाजल के संरक्षण की योजना अनिवार्य कर दी जाय तो राज्य में जल सम्बन्धी समस्या का निदान यूँ ही हो जाएगा। इस राज्य में ऐसी कोई नीति अब तक सामने नहीं आई है।
सर-बडियाड़ के सात जल धारे
Posted on 17 Oct, 2016 12:19 PM
यूँ तो उत्तराखण्ड में जब भी पानी की बात आती है तो उसके साथ देवी-देवता या नाग देवता की कहानी का होना आवश्यक होता है। ऐसा कोई धारा, नौला, बावड़ी या ताल-तलैया नहीं है जिसके साथ उत्तराखण्ड में किसी देवता का प्रसंग न जुड़ा हो। यही वजह है कि जहाँ-जहाँ पर लोग देवताओं के नाम से जल की महत्ता को समझ रहे हैं वहाँ-वहाँ पानी का संरक्षण हो रहा है।
यहाँ हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी की यमुनाघाटी स्थित ‘सरबडियाड़’ गाँव की जहाँ आज भी पत्थरों से नक्कासी किये हुए गोमुखनुमा प्राकृतिक जलस्रोत का नजारा देखते ही बनता है। यहाँ के लोग कितने समृद्धशाली होंगे, जहाँ बरबस ही सात धारों का पानी बहता ही रहता है। स्थानीय लोग बोल-चाल में इन धारों को ‘सतनवा’ भी कहते हैं। यानि सात नौले।