प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंह
पृथ्वी दिवस रस्म नहीं जरूरत है
Posted on 02 Apr, 2015 01:56 PMआज मानव सभ्यता विकास के चरम पर है। भौतिक एवं तकनीकी प्रगति ने जीवन को बहुत आसान बना दिया है। तेज चलती कारें, हवा से बात करती हवाई जहाज एवं एक सेकेंड में ही लाखों किमी दूर बैठे स्वजन से मोबाइल पर बात की जा सकती है। आज के सौ साल पहले ये सब बातें सोची भी नहीं जा सकती थीं। लेकिन भौतिक एवं तकनीकी प्रगति की इस आपसी प्रतिस्पर्धा ने आज मानव जीवन को बहुत खतरे में डालनदियों को जलमार्ग में बदलने की योजना
Posted on 27 Mar, 2015 11:04 AMकेन्द्र की भाजपा सरकार एक तरफ गंगा-यमुना और देश की अन्य नदियों को पुनर्जीवित करने का अभियान चला रही है वहीं पर दूसरी तरफ सरकार की कुछ योजनाओं से नदियों के अस्तित्व और जलीय जन्तुओं के जीवन और नदी के पारिस्थितिकी तन्त्र पर बड़ा खतरा बनने वाला है।
पानी का सामुदायिक प्रयोग हो
Posted on 24 Mar, 2015 12:32 PMविश्व जल दिवस पर विशेषजब मानवजाति का विकास नहीं हुआ था तब जीवन पूरी तरह प्रकृति पर ही निर्भर थी। जैसे-जैसे विकास की गति तेज होती गई प्रकृति का दोहन शुरू हो गया। हवा, जल, मिट्टी और यहाँ तक कि आकाश पर मानव अपना एकाधिकार जताने लगा। पहले पर्यावरण अपने आप में इतनी सन्तुलित थी कि शायद ही कभी किसी बीमारी या प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ा रहा हो।
मनुष्य और प्रकृति के सहअस्तित्व से होगा समस्या का समाधान
Posted on 26 Feb, 2015 01:06 PMग्लोबल वार्मिंग आज के विश्व के सामने बड़ी चुनौती बनके उभरी है। प्रकृतालाब से हरियाली और खुशहाली
Posted on 09 Sep, 2014 09:58 AM'तालाब बनाओ लाभ पाओ' का नारा महोबा में असर दिखाने लगा है। वर्षा जल संचयन और पानी के परंपरागत स्रोतों की तरफ यहां के लोगों का रुझान बढ़ा है। उनमें एक उम्मीद और विश्वास का भाव जगा है। वे यह मानने लगे हैं कि बुंदेलखंड का यह क्षेत्र उनके सार्थक पहल से पानी की कमी पूरी कर सकता है। चौपाल-गोष्ठियों में इसकी चर्चा हो रही है। नाउम्मीदी का वातावरण धीरे-धीरे खत्इस शहर का क्या करें
Posted on 31 Dec, 2013 12:12 PMभारत में अनियोजित शहरीकरण ने नए तरह का संकट पैदा कर दिया है। रोजगार और जीविका की तलाश में गांवों की आबादी तेजी से पलायन कर रही है। नतीजतन शहरी जीवन प्रदूषण, गंदगी, जाम जैसी समस्याओं से बदरंग होता जा रहा है। क्या इसे रोका जा सकता है? जायजा ले रहे हैं प्रदीप सिंह।अन्न की बर्बादी और भूख का भूगोल
Posted on 08 Jul, 2013 02:49 PMयों देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो चुका है। लेकिन भंडारण की सही व्यवस्था न होने की वजह से हर साल करोड़ों रुपए का अनाज बर्बाद हो जाता है। दूसरी तरफ देश की एक बड़ी आबादी को दोनों जून का खाना मयस्सर नहीं होता। रखरखाव और वितरण में व्याप्त बदइंतजामी के बारे में बता रहे हैं प्रदीप सिंह।कहीं बन न जाए राजनीतिक आपदा
Posted on 07 Jul, 2013 02:13 PM अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 22 मई 2013 को लैंडसेट-8 उपग्रह केसफाई के बहाने अरबों रुपए बहाए
Posted on 27 Jun, 2012 01:38 PMसरकार ने गंगा नदी की सफाई के लिए जितना पैसा बहा चुकी है, उससे कहीं अधिक गंदगी गंगा के पानी में घुल गई है। गंगा स
नीर, नारी, नदी सम्मेलन में जल योद्धाओं की माँग- सरकार बनाए नदी पुनर्जीवन नीति
Posted on 29 Sep, 2016 10:15 AM
इस वर्ष मानसून सामान्य रहा। बारिश भी खूब हुई। इसके बावजूद देश के कई राज्यों में सूखे जैसे हालात बन गए हैं। एक ओर कर्नाटक का बहुत बड़ा हिस्सा सूखे से प्रभावित है, वहीं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर एवं बस्ती मण्डल में वर्षा के अभाव में धान की फसल नष्ट हो रही है। महाराष्ट्र के कई इलाकों में भी इस वर्ष सूखे के हालात हैं।