केसरी कुमार

केसरी कुमार
जेठ की गंगा से
Posted on 16 Sep, 2013 12:34 PM
हे तपी देश की पुण्य तापसी गंगा!
हे युग-युग से इस आर्य-भूमि की-
सिद्धि-छाप-सी गंगा!

तुम इस निदाध में आज और भी
भारत के अनुरूप हुई
जब वह्नि-दाह में लू-प्रवाह में
धरा तप्त विद्रूप हुई

जब नाच रहा है अनाचार का
दानव भीषण नंगा
तुम आज और भी भारत के
अनुरूप हुई हो गंगा!

तुम एक अमर विश्वास लिए बहती हो
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