गोविंदचंद्र पाण्डेय

गोविंदचंद्र पाण्डेय
तवी
Posted on 22 Sep, 2013 04:12 PM
स्याह पड़े ताँबे-सा
पथरीला तट,
जल-रेखा,
फैला सुनसान,
गर्म साँसें-सी
चट्टानों की।

‘काई के पत्थर ढूँढ़ों,
चिकने छोटे-
काई का साग...’
‘काई का...’
‘हाँ, हाँ, सच...’
‘लो, सुनो...’
‘अरे...रे...
फिसलो मत’

मुँदते स्वर,
अँधियारे पुलिनों पर
बचपन के;
जल-रेखा
तलवार-सरीखी

तैर रहे अनुभव-क्षण
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