एस.सी.यादव

एस.सी.यादव
झीलों की एक वेदनामयी दुनिया
Posted on 08 Feb, 2014 10:29 PM
यह देश हमारा था,
तालाब, नदी और झरनों से।

नहरें और पोखर खूब बने,
कुदरत के अजब खिलौने से।।

यहां कुमुद कुमदनी खिलते थे,
रातों को चकई रोती थी।
मिलने को चकवा व्याकुल था,
रातों को दुनियां सोती थी।।

मिलन हुआ न रातों में,
वे सुबह उजालों में मिलते थे।

चकई चकवा की अमर कहानी,
झीलों की एक वेदनामयी दुनिया
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