देवराज

देवराज
सहस्त्रधारा
Posted on 13 Sep, 2013 11:31 AM
ओ सहस्त्रधारा!
ओ विमुक्त, ओ अबाध
अयि सदा विश्रृंखले
शैल-अंक, केलि-मग्न
विविध अकारा
ओ सहस्त्रधारा!

राशि-राशि नीर भर
तुंग शैल से उतर
कहीं दौड़ती अधीर
कहीं थिरकती निडर
दिखाती कला अनेक
पद -क्षेप द्वारा
ओर सहस्त्रधारा!

क्षुद्र तरु-पुंज में
वन्य घास में कहीं
एक क्षण को फँसी
क्रुद्ध स्वर फिर वही
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