देविंदर शर्मा

देविंदर शर्मा
जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय में ग्लेशियर पिघल रहे हैं, इस बात का कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं है - जयराम रमेश
Posted on 22 Nov, 2009 08:42 AM
आखिर इसके निहितार्थ क्या हैं? पर्यावरण और वन मंत्री जयराम रमेश द्वारा जारी की गई रिपोर्ट हिमालयन ग्लेशियर्स के अनुसार इस बात का कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय में ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इस अध्ययन की कोई जिम्मेदारी न लेते हुए जयराम रमेश ने बड़ी तत्परता से इसमें जोड़ा कि इसका मतलब इस विषय पर चर्चा को आगे बढ़ाना था।
पिघलते ग्लेशियर पर रिपोर्ट जारी करते जयराम रमेश
बिहार में बहार
Posted on 20 Dec, 2010 10:06 AM

बिहार में नीतीश कुमार दोबारा सत्ता में वापसी करने में सफल रहे। इससे आम लोगों को अपनी बेहतरी के लिए उम्मीद की किरण दिख रही है।
ग्लेशियरों के नहीं पिघलने का झूठ
Posted on 16 Oct, 2010 09:00 AM

पर्यावरण और वन मंत्री जयराम रमेश द्वारा जारी की गई रिपोर्ट हिमालयन ग्लेशियर्स के अनुसार इस बात का कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय में ग्लेशियर पिघल रहे हैं. इस अध्ययन की कोई जिम्मेदारी न लेते हुए जयराम रमेश ने बड़ी तत्परता से इसमें जोड़ा कि इसका मतलब इस विषय पर चर्चा को आगे बढ़ाना था.

मुझे इस चर्चा को आगे बढ़ाने में कोई तुक नजर नहीं आता, जबकि इंटरनेशनल पैनल आन क्लाइमेट चेंज पहले ही स्वीकार कर चुकी है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. मुझे हैरानी नहीं होगी, अगर बाद में यह पता चले कि यह नदियों को जोड़ने के लिए माहौल बनाने का प्रयास था. आखिरकार, इस संभाव्य परियोजना पर अरबों डालर का दारोमदार है और लाबी अभी भी काम में जुटी
जीन का जिन्न
Posted on 06 Aug, 2010 01:13 PM
एक बार जीन बाहर आ जाए तो इसे रोकने का कोई रास्ता नहीं है।

इसका लंबे समय से डर था। सामाजिक कार्यकर्ता और सजग वैज्ञानिक इसकी चेतावनी दे चुके थे, किंतु सरकार ने आंखें मूंदे रखीं। अब डर सच साबित हो चुका है। इसने पर्यावरण प्रदूषण के एक और विनाशकारी रूप-जीन प्रदूषण पर चिंता बढ़ा दी है।

जीएम धान
पानी, जहर और जीडीपी
Posted on 17 May, 2010 10:13 PM

भारत में नदियों को प्रदूषित करने की अनुमति दी जाती है. आप जितना प्रदूषित पानी पिएंगे, बीमार पड़ने की उतनी ही अधिक संभावना होगी. फिर आप डाक्टर के पास जाएंगे, जो आपसे फीस वसूलेगा. जिसका मतलब हुआ कि पैसा हाथों से गुजरेगा. इससे जीडीपी बढ़ेगी. यहां तक कि सफाई अभियान भी, जैसे यमुना की सफाई के लिए एक हजार करोड़ रुपए, जीडीपी की गणना को ही बढ़ाती है.

इस चिलचिलाती गरमी में पानी का मुद्दा गरमाया हुआ है. जैसे-जैसे तापमान चढ़ रहा है और प्रमुख जलस्त्रोत सूखते जा रहे हैं, दिन-ब-दिन पीने के पानी को लेकर खून बहने लगा है. अपनी रोजमर्रा की जरूरत भी पूरी न होने से गुस्साएं प्रदर्शनकारी सड़कों पर निकल रहे हैं. आने वाले महीनों में, पानी की अनुपलब्धता सुर्खियों में रहने वाली है.

पिछले 15 सालों से खतरे की घंटी बज रही है, किंतु किसी ने भी परवाह नहीं की. 1990 के दशक के मुकाबले पिछले दशक में 70 प्रतिशत अधिक भूजल का दोहन हुआ है और देश भर में जलस्त्रोत प्रदूषित हो गए हैं. जिससे कैंसर और फ्लूरोसिस जैसी बीमारियां फैल रही हैं.

×