देवांशु झा
देवांशु झा
गंगा केवल पुराणों में बहेगी
Posted on 04 Apr, 2010 08:57 AMआज नदी बिलकुल उदास थी/ सोयी थी अपने पानी में/ उसके दर्पण पर बादल का वस्त्र पड़ा था/ मैंने उसे नहीं जगाया/ दबे पांव घर वापस आया।’ न जाने वह कौन सी नदी थी, जिसकी उदास और सोयी हुई लहरों पर कवि केदारनाथ अग्रवाल ने इतना सुंदर बिम्ब रचा था। कवि को उस रोज नदी उदास दिखी, उदासी दिल में उतर गई।