भारतभूषण अग्रवाल

भारतभूषण अग्रवाल
कैसी तुम नदी हो!
Posted on 19 Sep, 2013 04:16 PM
(पूरी-दर्शन की याद में)

सागर को सामने पाकर ठिठक गई
कैसी तुम नदी हो?

जिसके लिए निकली थीं एक युग पहले तुम
चट्टानें तोड़तीं
अनजाने बीहड़ वनों को झिंझोड़ती
बाधाएँ उपाटकर
अपनी अनोखी,क्षिप्र इठलाती गति से
कठिन जमीन को काटकर
जीवन-भर गाती हुई
सूखे मैदानों को रिझाती हुई
बाँहों से तटों के कगारों को काटकर
पगली!
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