अष्टभुजा शुक्ल

अष्टभुजा शुक्ल
प्यार के पौधे से
Posted on 08 Oct, 2014 04:22 PM
बूढ़े समुद्र के पानी से
नहीं रोपा जा सकता
प्यार का नया पौधा
उसके लिए
सद्यःजात आंसू ही उर्वरा है

प्यार के नए पौधे में
फूल खिलने के लिए
नहीं सोचना चाहिए
बूढ़ी नदी के पानी से
उसके लिए सद्यःजात पसीना ही ठीक है

प्यार के नए फूलों को
कुम्हलाने से बचाने के लिए
नहीं निर्भर रहना चाहिए
ओस की बूंदों पर
उसके लिए
चिड़िया
Posted on 05 Dec, 2013 10:39 AM
एक छोटी-सी चिड़िया
प्यासी हुई
उड़कर आती है
नदी से
दो बूंद पानी पीकर
नदी के
बराबर हो जाती है

जितनी दूर तक
बहती है
लंबी-चौड़ी नदी
कई-कई दिनों में
उससे बहुत दूर
कुछ ही पलों में
धाड़ आती है चिड़िया
और लौट आती है
अपने घोंसले में
चिड़िया का घोंसला
कोई ब्रह्मा का
कमंडल तो है नहीं
कि उसमें समा जाए
पानी पर पटकथा
Posted on 07 Dec, 2012 11:26 AM
न तो पानी से साहित्य बच सकता है और न साहित्य से पानी। फिर भी साहित्य में पानी होना चाहिए और पानी में साहित्य। यदि साहित्य से पानी बचता तो इतना विपुल साहित्य रचे जाने के बावजूद आज हमें ऐसा जल संकट क्यों झेलना पड़ता। सच है कि पानी के बिना जीवन नहीं चल सकता तो जीवन के बिना पानी भी नहीं चल सकता।
जल को ही विधाता की आद्यासृष्टि माना गया है। जब सृष्टि में और कुछ नहीं रहता तब भी जल ही रहता है और सृष्टि में सब कुछ रहता है तो भी जल के ही कारण रहता है। इस पृथ्वी के नीचे भी जल ही है और जिस पृथ्वी के ऊपर यह जीवन है, उसके ऊपर के जलद पर्जन्य से ही जीवन अस्तित्व में है। पानी के दो पाटों के बीच ही जीवन का उद्भव और विकास होता है। अतः जीवन के लिए जल ही मौलिक तत्व है। किंतु इस जल को कथमपि बनाया नहीं जा सकता, इसे सिर्फ बचाया जा सकता है। हवा में मुक्का मारने पर लिखा जा चुका है, आसमां में सुराख करने पर लिखा जा चुका है, हथेली पर बाल उगाने पर लिखा जा चुका है, समय की शिला पर लिखने के प्रयास किए जा चुके हैं, बिना लिखे ही कोरे कागज को प्रिय के पास प्रेषित करने की भी परंपरा रही है, लेकिन हाहंत! आज मुझे पानी पर लिखना पड़ रहा है। उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए लिखने को तो पानी पर भी लिखा जा सकता है, लेकिन यदि पानी ही कागज, बोर्ड या कैनवास हो तो आप अलबेले से अलबेले लेखक की विवशता को समझ सकते हैं। फिर चाहे गुरुमुखी का ज्ञाता हो या ब्राह्मी का, खरोष्ठी में पारंगत हो या देवनागरी में, रोमन में धाराप्रवाह लिखता हो या फारसी में, आशुलिपिवाला हो या टंकणवाला, कंप्यूटरवाला हो या इंटरनेटवाला अथवा पुरानी मान्यताओं के सुरतरुवरशाखा लेखनी और सात समुद्रों की मसि बनाने वाले लेखक ही क्यों न रहे हों, इस पानी पर कोई भी लिपि टिक नहीं सकती।
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