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साक्षात्कार
अगर दुनिया को बचाना है .........
Posted on 08 Feb, 2009 07:45 AMतो हिमालय को पेड़ों से ढकें
जागरण – याहू / प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा मानते हैं कि अगर दुनिया को बचाना है तो हिमालय को पूरी तरह पेड़ों से ढकना होगा। पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिग के खतरों सहित तमाम मुद्दों पर देहरादून में 'दैनिक जागरण' के मुख्य संवाददाता अतुल बरतरिया ने बहुगुणा से बातचीत की। पेश हैं इसके प्रमुख अंश-
लोग हमारे साथ
Posted on 23 Sep, 2008 09:07 AMचिपको, शराबबंदी और उत्तराखंड आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली और गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा भट्ट इन दिनों राज्यव्यापी नदी बचाओ अभियान में सक्रिय हैं। उनके नेतृत्व में उत्तराखंड में इस साल (नदी बचाओ अभियान वर्ष) मनाया जा रहा है। इस अभियान के बारे में आपसे बातचीत:
जल में बसा देवता
Posted on 21 Sep, 2008 08:47 PMवे पुरोगामी पुरुष हैं। कार्यकर्ता तो आपको बहुत मिलेंगे, परंतु कर्म व ज्ञान का सम्मिश्रण आपको अनुपम मिश्र में ही मिलेगा। ज्ञान, कोरी सूचना भर नहीं, अनुभव की आंच में तपा हुआ अर्जित ज्ञान। उनका समूचा जीवन जल के प्रति एक सच्ची प्रार्थना रहा है। तीन दशकों से भी अधिक समय से वे भारत के लुप्त होते जल संसाधनों को बचा रहे हैं। इसलिये उनका प्रत्येक शब्द एक दस्तावेज बनता है, जहाँ वे जल संकट के विभिन्न पहलु
जल नीति राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में बननी चाहिये
Posted on 21 Sep, 2008 07:37 PMप्रोफेसर रासा सिंह रावत अजमेर के सांसद हैं। कहते हैं कि जब मैं छोटा था तो अजमेर में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनो ही ओर का मानसून आता था। लेकिन वनों के कटने और रेगिस्तान के विस्तार के कारण वनस्पति का अभाव हो गया। परिणामस्वरुप अजमेर भी मारवाड़ व मेवाड़ की तरह अकाल की चपेट में आ गया। वर्षाभाव की वजह से तालाब सूख गये। राजस्थान सरकार ने अब तय किया है कि अजमेर जिले के गाँवों को भी बीसलपुर का पानी
हम नदी के रास्ते को साफ रखें
Posted on 21 Sep, 2008 06:45 PMमुंशी राम बिजनौर के जुझारू सांसद हैं। वे अपने जिले की जल समस्याओं से न केवल परिचित हैं, बल्कि उसका समाधान भी सुझाते हैं कि अगर नदी के रास्ते को साफ रखा जाये तो बाढ़ की समस्या सुलझ सकती है। वे नदी के अधिशेष जल को सूखा ग्रस्त इलाकों में ले जाने की भी वकालत करते हैं। लेकिन वे इंगित करते हैं कि लिफ्ट करके पानी को दूसरी जगह पहुँचाना उचित नहीं है, हमें नदी के सहज गुरुत्वाकर्षण को प्रयोग में लाना चाहि
लघु बाँध ही समस्या का उपाय है
Posted on 21 Sep, 2008 06:18 PMमानवेंद्र सिंह देश की सबसे युवा पीढ़ी के नेता हैं। तीन वर्ष पहले उन्होंने पहली बार बतौर सांसद शपथ ग्रहण की है। देश के नितांत सूखे इलाके बाढ़मेर के प्रतिनिधि होने की वजह से उनसे काफी अपेक्षायें भी हैं कि वे जल संबंधी कार्य को किस नजर से देखते हैं। उनका नजरिया स्पष्ट है- लघु बाँध ही समस्या का उपाय है। देश दुनिया में घूमे मानवेंद्र को लिखने, पढ़ने में गहरी दिलचस्पी है। वे मूलत: पत्रकार ही थे। वे फ
भारत-बंग्लादेश समस्या जैसी जल समस्या
Posted on 21 Sep, 2008 05:44 PMखीरी संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधि, समाजवादी पार्टी के सांसद देश के सुलझे हुये विचारवान सांसदों में से हैं। वे नेपाल की नदियों से होने वाले संभावित खतरे के प्रति न सिर्फ सतर्क हैं बल्कि संसद को भी आगाह करते रहे हैं। उनके नजरिये से भारत के पाकिस्तान समस्या मूलत: जल समस्या है।
बिहार की बाढ़
Posted on 21 Sep, 2008 05:20 PMबाढ़ से पूर्ण मुक्ति के लिये ''नदी मुक्ति आंदोलन'' शुरु किया है, परंतु राजनेता व तटबंध ठेकेदारों द्वारा निरंतर रोढ़े डाले जाने की वजह से यह बहुत अधिक सफल नहीं हो पाया है। नदी मुक्ति आंदोलन सभी तटबंधों को हटाने व नदी को 1954 पूर्व की अवस्था पर लाने की माँग करता है। हम शोधकर्ता, नीति निर्माता व सरकार को इस मुद्दे से अवगत कराते हैं और आम जनता को शिक्षित करते हैं कि तटबंध बाढ़ समस्या का समाधान नहीं
मौत का पानी : दीपांकर चक्रवर्ती
Posted on 17 Sep, 2008 12:15 PMअंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पानी में आर्सेनिक नामक विषैले तत्व की मौजूदगी की ओर उस वक्त लोगों का ध्यान गया, जब 1994-95 में 'द एनालिस्ट' में आपका शोधपत्र छपा, जिस पर 1996 में 'द गार्डियन' में छपे एक लेख में 'द वाटर ऑफ डैथ' (मौत का पानी) शीर्षक से टिप्पणी की गई थी। भूजल में आर्सेनिक विशाक्तता अब पानी को मौत का पानी बना रही है, इंडिया वाटर पोर्टल के लिए दिए गये साक्षात्कार की हिन्दी प्रस्तुतिनीयत का कमाल
Posted on 16 Sep, 2008 02:34 PMमैत्री आंदोलन के प्रवर्तक कल्याण सिंह रावत से बातचीतक्या मैती आंदोलन के इस तरह व्यापक होने की उम्मीद पहले से थी?
इस आंदोलन की जो अवधारणा थी और जो ताना-बाना बुना गया था, उससे ही यह उम्मीद हो गई थी कि लोग जरूर इस आंदोलन को अपनाएंगे और इसमें अपनी भावनात्मक दिलचस्पी जरूर दिखाएंगे। उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल में, यह आंदोलन अपने आप फैलता चला गया।