Posted on 13 Sep, 2014 11:18 AM केंद्र सरकार हो चाहे राज्य सरकारें, किसानों और कृषि की हालात सुधारने के प्रति कितनी ईमानदार हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सूखाग्रस्त क्षेत्रों को बिना डीजल व बिजली के चलने वाले सिंचाई यंत्र ‘मंगल टरबाइन’ की सौगात देने वाला वैज्ञानिक दर-दर की ठोकरें खा रहा है।
Posted on 15 Apr, 2013 10:25 AMलगातार सूखे की दंश झेल रहे बुंदेलखंड में ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने सूखे से निपटने हेतु अभिनव प्रयोग किये हैं जिसने न केवल उनकी अपनी आजीविका को ही समृद्ध किया है बल्कि क्षेत्र के लिए एक मिसाल कायम किया है।
Posted on 14 Apr, 2013 10:30 AMविन्ध्यांचल की तलहटी में बसे आदिवासी बहुल गाँवों की भूमि पथरीली होने के कारण खेती अधिक खर्चीली होती है तिस पर बढ़ती पर्यावरणीय समस्याओं व मंहगाई ने किसानों को बिल्कुल ही निराश किया है।
Posted on 14 Apr, 2013 10:25 AMसूखे ने किसानों के समक्ष भुखमरी की स्थिति पैदा की और लोगों को पलायन हेतु मजबूर किया, पर यह भी समस्या का स्थाई समाधान नहीं था, तब लोगों ने पुनः अपनी परंपरागत खेती की और वापसी की।
Posted on 13 Apr, 2013 03:21 PMविकास की बयार से खेती खूब प्रभावित हुई। लोग हइब्रिड बीजों एवं आधुनिक खेती की ओर आकर्षित हुए परंतु धीरे-धीरे विकास ने विनाश का रूप धारण किया और इन बीजों से लागत बढ़ती गई व उपज घटती गई, तब लोगों ने पुनः परंपरागत बीजों के भण्डारण की ओर रूख किया।
Posted on 11 Apr, 2013 01:29 PMअपनी भौगोलिक बनावट विपरीत जलवायुविक परिस्थितियों के चलते बुंदेलखंड कृषि के लिहाज से बहुत मुफीद नहीं रहा है। लिहाजा लोग अन्य विकल्पों की तलाश में रहते हैं। ऐसे में कुछ लोगों ने बाग़वानी को अपनाकर एक नई शुरुआत की है, जो क्षेत्र को हरा-भरा कर एक नई शुरुआत की है। यह क्षेत्र को हरा-भरा रखने के साथ ही आजीविका का साधन भी रही है।
Posted on 11 Apr, 2013 01:15 PMखेती में पशुपालन एक महत्वपूर्ण अवयव के रूप में हमेशा से उपयोगी रहा है। सूखे के क्षेत्र में इसका महत्व और बढ़ जाता है और उसमें भी बकरी पालन सूखे की दृष्टिकोण व छोटे किसानों के लिहाज से काफी प्रभावी है क्योंकि इसमें लागत कम होने के साथ ही साथ आजीविका के विकल्प भी बढ़ जाते हैं।
Posted on 09 Apr, 2013 03:39 PMनदी किनारे की पडुई ज़मीन आमतौर पर खेती लायक नहीं होती। इसमें अमरूद की बागवानी लगाकर आजीविका के बेहतर स्रोत पाने की साथ ही पेड़-पौधों से पर्यावरण संरक्षण में भी सहायता मिलती है।