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आज भी खरे हैं तालाब (बंगाली)
Posted on 03 Feb, 2012 02:00 PM

अपनी पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” में श्री अनुपम जी ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है।

आज भी खरे हैं तालाब (बंगाली)
दलदली जमीन का संरक्षण कीजिए
Posted on 02 Feb, 2012 10:21 AM नमभूमियां अर्थात दलदल भूमि प्रकृति का एक ऐसा अनोखा और अनुपम स्वरूप है जो हमारे पर्यावरण संरक्षण में विशेष योगदान देते हैं। असल में नमभूमि अपनी अनोखी पारिस्थितिकी संरचना के कारण महत्वूपर्ण है। नमभूमियों के अंतर्गत झीलें, तालाब, दलदली क्षेत्र, हौज, कुण्ड, पोखर एवं तटीय क्षेत्रों पर स्थित मुहाने, लगून, खाड़ी, ज्वारीय क्षेत्र, प्रवाल क्षेत्र, मैंग्रोव वन आदि शामिल हैं। गुजरात को नलसरोहर, उड़ीसा की चिल्का झील और भितरकनिका मैंग्रोवन क्षेत्र, राजस्थान का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान तथा दिल्ली का ओखला पक्षी अभयारण्य नमभूमि क्षेत्र के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। अभी तक विश्व भर के 1,994 नमभूमियों के रूप में चिन्हित किया गया है जो करीब उन्नीस करोड़ अठारह लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर फैली हुई है। इन क्षेत्रों में से 35 प्रतिशत क्षेत्र पर्यटन संभावित क्षेत्र हैं। इसलिए इन क्षेत्रों में इको-पर्यटन को बढ़ावा देने और वहां धारणीय विकास (सस्टेनेबल डेवलेपमेंट) के लिए इस बार के विश्व नमभूमि दिवस का थीम ‘नमभूमि और पर्यटन’ रखा गया है। नमभूमियां भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 4.63 प्रतिशत क्षेत्रफल पर फैली हुई है यानी कुल 15,26,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर। इनसे अलावा 2.25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल से कम आकार वाली करीब 5,55,557 छोटी-छोटी नमभूमियां चिन्हित की गई हैं।
मनरेगा : न्यूनतम वेतन पर अधिकतम सवाल
Posted on 01 Feb, 2012 05:25 PM

श्रम व रोजगार मंत्रालय ने भी अपना मत प्रस्तुत किया था कि मनरेगा का सेक्शन- 6(1) न्यायसंगत नहीं है। आंध्र प्रदेश

नदियों का नामकरण
Posted on 31 Jan, 2012 05:27 PM नदी शब्द की उत्पत्ति ‘नद्’ से हुआ है, जिसका अर्थ होता है- आवाज करना। कलकल की ध्वनि होने के कारण उसे नदी कहा जाता है। नदियों के नाम अर्थयुक्त और सुंदर हैं, जिन पर देवभाषा संस्कृत की स्पष्ट छाप है। ये नाम प्राचीनकाल के मनीषियों या भूगोल शास्त्रियों ने रखा है। भारत कृषि प्रधान देश है और कृषि का आधार है- नदियां। हमारी सभ्यता का उदय नदियों के किनारे ही हुआ है। इन्हीं के कारण भारत भूमि शस्य श्यामला बन प
कपड़े धोने में निकलता है खतरनाक कचरा
Posted on 31 Jan, 2012 11:03 AM लंदन। एक ताजा अध्ययन में पाया गया है कि कप़ड़ा धोने से निकलने वाला प्लास्टिक का सूक्ष्म कचरा समुद्री तटों पर जमा होकर इंसान और कुदरत के लिए खतरा बनता जा रहा है। शोधकर्ताओं को इन सूक्ष्म प्लास्टिक के कणों का पता सिंथेटिक कप़ड़ों से चला है जो हर धुलाई में कम से कम 1900 सूक्ष्म रेशे पानी में छोड़ते हैं। इसके पहले के शोध में यह पाया गया था कि एक मिली मीटर से भी छोटे प्लास्टिक के रेशों को आमतौर पर जानव
बांध के खिलाफ लगा एक मोर्चा
Posted on 31 Jan, 2012 10:06 AM

देश में आम जनता द्वारा प्राकृतिक संपदा के लूट और विनाशकारी परियोजना का इतना बड़ा विरोध शायद नर्मदा बांध के बाद सबसे बड़ा विरोध है लेकिन इस ओर न ही सरकारों का ध्यान जा रहा है और न ही बहुचर्चित अन्ना आंदोलन का। भ्रष्टाचार के खिलाफ शायद यह आंदोलन अन्ना द्वारा छेड़े जा रहे लोकपाल बिल लाने के आंदोलन से भी बड़ा है। लेकिन देश में इस तरह के आंदोलन की बहस नहीं हो पाती जो भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़े जाने वाले असली आंदोलन हैं, जो देश को विनाश से बचाने के आंदोलन हैं और जो आम गरीब, ग्रामीण, महिलाओं के नेतृत्व में लड़े जाने वाले आंदोलन हैं।

देश के उत्तर पूर्व के एक राज्य असम के लखीमपुर जिले में निर्माणाधीन लोअर सुबानसिरी को वहां के जनसंगठनों की तरफ से पिछले एक महीने से हजारों की संख्या में चक्का जाम कर बांध निर्माण को रोक दिया है। यह बांध असम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा में ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर बनाया जा रहा है जो कि अपने विकराल रूप के लिए सदियों से जानी जाती है। 14 जनवरी 2012 को असम की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार द्वारा आंदोलनकारियों को तितर बितर करने के लिए गोली चलाई गई जिसमें 15 लोग घायल हो चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद भी आंदोलन अभी तक थमा नहीं है। इस कड़ाके की सर्दी में हजारों महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर सड़क पर टस से मस होने को तैयार नहीं है। कृषक मुक्ति संग्राम समिति एवं आल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में चला आ रहा यह आंदोलन अब बिल्कुल सड़क पर उतर आया है जिसका समर्थन असम के मध्यम वर्ग एवं बुद्धिजीवी वर्ग को भी मिल रहा है।
रोशनी बुझी नहीं
Posted on 30 Jan, 2012 01:39 PM

ऐसा नहीं है कि उनकी आत्मानुभूतिमूलक ज्ञान-मीमांसा से जिस नई जीवन-पद्धति की समझ बनती है उसमें आ

उर्वरक नीति से बर्बाद होते किसान
Posted on 30 Jan, 2012 01:00 PM

गौर करने वाली बात यह है कि देश की कुल उर्वरक खपत में यूरिया का हिस्सा 2.7 करोड़ टन है यानी इस्

ग्लोबल वार्मिंग का समाधानः गांधीगीरी
Posted on 30 Jan, 2012 11:59 AM ‘‘ग्लोबल वार्मिंग का समाधानः गांधीगीरी’’ पुस्तक में जलवायु परिवर्तन को समझाने के साथ ही गांधीगीरी के द्वारा इससे निपटने के तरीकों पर विचार व्यक्त किया गया है। पुस्तक में भूमिका और प्रस्तावना के अतिरिक्त 14 अध्याय है। भूमिका में लेखक कहते हैं कि ‘‘मानवीय गतिविधियों के कारण वैश्विक तापन यानी ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पन्न हो रहे विभिन्न खतरों से इस ग्रह के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं
कहीं ‘काली’ साबित न हों हरित अदालतें
Posted on 30 Jan, 2012 09:49 AM

जीएम बीजों और कीटनाशकों के फसलों पर छिड़काव से भी बड़ी मात्रा में इनसे जुड़े लोगों की आजीविका

Environmental destruction
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