सुंदरलाल बहुगुणा
83 साल की उम्र, लेकिन बात जब पर्यावरण के लिए लडने की हो तो सुंदर लाल बहुगुणा के बुजुर्ग तन में नई उमंग भर जाती है। नाम से सुंदर और काम से उससे भी सुंदर। कुदरत ने जिस उत्तराखंड को अपने हाथों से सजाया, पहाड की उसी माटी में टिहरी के पास जन्म हुआ था सुंदरलाल बहुगुणा का। कुदरत की इस अनमोल देन को बचाने के लिए पूरी जिंदगी उन्होंने लगा दी।
1973 में उन्होंने चिपको आंदोलन शुरू किया, जो दुनिया भर में मशहूर हुआ। कर्नाटक में यही अप्पिको आंदोलन के नाम से चला। टिहरी को बचाने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने लंबी लडाई लडी। टिहरी बांध बनने के खिलाफ उन्होंने कई बार अनशन किया। उनका कहना था कि इस बांध के चलते भूकंप आ सकता है और अगर भूकंप आया तो यहां भयानक तबाही मच सकती है।
जिंदगी की इस ढलती शाम में भी पर्यावरण संरक्षण में लगे हैं सुंदरलाल बहुगुणा। देश भर में घूम-घूमकर वे पर्यावरण की अलख जला रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में वे लोगों को पर्यावरण को लेकर जागरूक कर रहे हैं। पर्यावरण की सेवा के लिए उन्हें पkभूषण समेत देश के दर्जनों प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं।
1973 में उन्होंने चिपको आंदोलन शुरू किया, जो दुनिया भर में मशहूर हुआ। कर्नाटक में यही अप्पिको आंदोलन के नाम से चला। टिहरी को बचाने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने लंबी लडाई लडी। टिहरी बांध बनने के खिलाफ उन्होंने कई बार अनशन किया। उनका कहना था कि इस बांध के चलते भूकंप आ सकता है और अगर भूकंप आया तो यहां भयानक तबाही मच सकती है।
जिंदगी की इस ढलती शाम में भी पर्यावरण संरक्षण में लगे हैं सुंदरलाल बहुगुणा। देश भर में घूम-घूमकर वे पर्यावरण की अलख जला रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में वे लोगों को पर्यावरण को लेकर जागरूक कर रहे हैं। पर्यावरण की सेवा के लिए उन्हें पkभूषण समेत देश के दर्जनों प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं।