श्रीपाल सिंह ‘क्षेम’

श्रीपाल सिंह ‘क्षेम’
गंगे!
Posted on 24 Sep, 2013 01:40 PM
परिवर्तित काल-पटल पर अंकित करती अपना ज्योति-ज्वार।
‘गं-गं’ स्वर में जाने कब से उद्गीथ गा रही गंग-धार।।

अग-जग में प्राण-पुलक भरती, अहरह मुद मंगल-भरिता है।
कैसे कह दूँ, इस धरणी पर मातः, तू केवल सरिता है।।

तु उस लघु मानव की स्मृति जो वामन से कभी विराट् हुआ।
लघुता का अनु हो ब्रह्मांडित, देवों का भी अभिराट् हुआ।।
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