रामनरेश त्रिपाठी

रामनरेश त्रिपाठी
ये नदियाँ कुछ गातीं
Posted on 19 Jul, 2013 11:58 AM
गिरि, मैदान, नगर, निर्जन में एक भाव में मातीं।
सरल कुटिल अति तरल मृदुल गति से बहु रूप दिखातीं।
अस्थिर समय समान प्रवाहितये नदियाँ कुछ गातीं।
चली कहाँ से, कहाँ जा रहीं, क्यों आईं, क्यों जातीं?

इन्हें देखकर क्यों न लोग आश्चर्य प्रकट करते हैं।
इनके दर्शन से निज मन का कष्ट न क्यों हरते हैं?
जहाँ लता तृण में हैं केवल झाग प्रतिष्ठा पाते।
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