रामधारी सिंह 'दिनकर'
रामधारी सिंह 'दिनकर'
ओ नदी!
Posted on 26 Aug, 2013 11:27 AMओ नदी!सूखे किनारों के कटीले बाहुओं से डर गई तू।
किंतु, दाई कौन?
तू होती अगर,
यह रेत, ये पत्थर, सभी रसपूर्ण होते।
कौंधती रशना कमर में मछलियों की।
नागफनियों के न उगते झाड़,
तट पर दूब होती, फूल होते।
देखतीं निज रूप जल में नारियां।
पांव मल-मल घाट पर लक्तक बहाकर
तैरती तुझमें उतर सुकुमारियां।
किलकते फिरते तटों पर फूल-से बच्चे।