पंकज चतुर्वेदी

पंकज चतुर्वेदी
जरूरत है पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता
Posted on 13 Mar, 2016 12:22 PM

इन दिनों अमेरिका के कई राज्यों मे पतझड़ शुरू हो गया है। नियम है कि हर पेड़ से गिरने वाली प्रत्येक पत्ती और यहाँ तक कि सींक को भी उसी पेड़ को समर्पित किया जाता है। समाज के कुछ लोग पुराने पेड़ों के तनों की मर गई छाल को खरोंचते हैं और इसे भी पेड़ की जड़ों में दफना देते हैं। पेड़ों की पत्तियों को ना जलाने और उन्हें जैविक खाद के रूप में संरक्षित करने के कई नियम व नारे तो हमारे यहाँ भी हैं, लेकिन उनक

मवेशियों पर सूखे की मार से बेखबर समाज
Posted on 12 Feb, 2016 03:16 PM

मौसम में बदलाव के साथ बुन्देलखण्ड में अभी सूखे की आग और भड़क
सूखे के कारण पलायन कर रहे हैं बुन्देलखण्डी
Posted on 21 Jan, 2016 02:57 PM

‘‘मैं हर जगह गया
पंजाब गया, बंगाल गया, गया कर्नाटक
राजस्थन के मरुस्थल से,
शिमला की बर्फ से, कश्मीर के चिनारों तक
रहा मेरा एक ही अनुरोध
यूँ शिकारी कुत्तों सा ना न सूँघो
उसी मिट्टी से बनी है मेरी देह
लगी है जो तुम्हारे तलुओं में।’’


अकेले दिल्ली पर कड़ाई नहीं सुधरेगी राजधानी की सेहत
Posted on 14 Jan, 2016 12:41 PM

दिल्ली में बढ़ते जहरीले धुएँ के लिये आमतौर पर इससे सटे इलाकों में खेत में खड़े ढूँठ को जलाने से

वृक्षायुर्वेद यानि सस्ती व सुरक्षित खेती की परम्परा
Posted on 09 Jan, 2016 02:22 PM

सीआईकेएस में बीते कई सालों से वृक्षायुर्वेद और ऐसे ही पुराने ग्रंथों पर शोध चल रहे हैं। यहाँ ब

सावधान दुनिया में बढ़ रहा है मरुस्थल
Posted on 08 Jan, 2016 02:37 PM
हम वैश्विक प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन के शिकार तो हो ही रहे हैं, ज़म
तालाबों को बचाने की जरूरत
Posted on 08 Jan, 2016 12:36 PM


इस बार बारिश बहुत कम होने की चेतावनी से देश के अधिकांश शहरी इलाकों के लोगों की चिन्ता की लकीरें इस लिये भी गहरी हैं कि यहाँ रहने वाली सोलह करोड़ से ज्यादा आबादी के आधे से ज्यादा हिस्सा पानी के लिये भूजल पर निर्भर है। वैसे भी भूजल पाताल में जा रहा है और इस बार जब बारिश हुई नहीं तो रिचार्ज भी हुआ नहीं, अब पूरा साल कैसे कटेगा।

सूखा : राहत नहीं दूरगामी स्‍थायी योजना की जरूरत
Posted on 29 Dec, 2015 09:43 AM
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने स्वराज अभियान की एक जनहित याचिका पर 11
महंगी पड़ सकती है खेती-किसानी से बेपरवाही
Posted on 20 Dec, 2015 12:35 PM
इन दिनों देश में बाहर की कम्पनियों को कारखाने लगाने के लिये न्योतने का दौर चल रहा है। जबकि देश की बहुसंख्यक आबादी के जीवकोपार्जन के जरिए पर सभी मौन हैं। तेजी से विस्तार पर रहे शहरी मध्य वर्ग, कारपोरेट और आम लोगों के जनमानस को प्रभावित करने वाले मीडिया खेती-किसानी के मसले में लगभग अनभिज्ञ है।
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