ओम नागर

ओम नागर
जल जीवन की कविताएँ
Posted on 15 Apr, 2017 10:44 AM
(एक)
चुल्लू भर
डूबने के लिये
ओक भर
प्यास के लिये
अंजूरी भर
किस के कमंडल में
विध्वंस के लिये
यहाँ तो
आँख भर बचा हैं
जिस में डबडबाता है
काला हीरा।

(दो)
धूप सूख कर
काँटा हुई
हवा सूख कर
हुई प्यास
पानी सूख कर
धरती
धरती सूख कर
हो गई आकाश
बादल पसीज कर
पानी न हुआ।
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