निशीथ जोशी

निशीथ जोशी
गंगा ही नहीं रही तो तारेगा कौन?
Posted on 12 Apr, 2010 08:36 PM

अपने उद्गम से लेकर हरिद्वार के उन घाटों तक गंगा का निर्मल जल वैसे ही कल-कल, छल-छल बहता हुआ, जैसा कभी बचपन में देखता था। गंगा मां की गोद में डुबकी मारकर जाने-अनजाने में किए गए अपने पापों को धोकर मोक्ष की कामना से स्नान करने वालों की भीड़। मैं कई किलोमीटर तक गंगा के किनारे चलता रहा। एक घाट पर अकेला नहाता एक इंसान नजर आया। मैंने उसे पहचान लिया। कई बार उसे दाह संस्कार करते देखा था। गंगा में स्ना
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