ग्रामीण विकास विज्ञान समिति

ग्रामीण विकास विज्ञान समिति
फ्लोराइड युक्त प्रसाधन यथा दंत मंजन एवं मुख प्रक्षालक
Posted on 15 Feb, 2014 04:24 PM
दांतों में फ्लोरोसिसगुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रियाएं संचालित करने वाली प्रयोगशालाओं द्वारा फ्लोराइड की मात्रा का परीक्षण करने हेतु तीस प्रकार के दंत मंजनों (जिन पर “फ्लो
विफ्लोरिडीकरण
Posted on 15 Feb, 2014 04:12 PM

1. जल में फ्लोराइड का उद्भव

राजस्थान में फ्लोराइड की विभीषिका
Posted on 10 Feb, 2014 04:01 PM
आजादी के बाद राजस्थान को 41 वर्ष अकाल की स्थिति का सामना करना पड़ा
Fluorosis
फ्लोराइड एवं इसके दुष्प्रभाव
Posted on 10 Feb, 2014 12:40 PM

1. फ्लोराइड एवं इसके भौतिक गुण


मनुष्य की शारीरिक संरचना में फ्लोराइड की उपस्थिति अत्यंत कम मात्रा में अति आवश्यक है। कुछ एन्जाइम प्रक्रियाएं फ्लोराइड की कम मात्रा से या तो धीमी हो जाती हैं अथवा तेज हो जाती हैं और अन्य कार्बनिक एवं अकार्बनिक तत्वों के साथ रासायनिक प्रक्रियाएं संपन्न होती हैं। शरीर में अस्थियों एवं दांतों में कैल्शियम की सर्वाधिक मात्र पाई जाती है कैल्शियम एक विद्युत धनात्मक तत्व है और अपने धनात्मक प्रभाव के द्वारा विद्युत ऋणात्मक फ्लोराइड को अधिकाधिक मात्रा में अपनी तरफ खींचता है। फ्लोराइड भू-पटल में बहुतायत से पाया जाने वाला तेरहवां (13वां) तत्व है। इसकी खाज प्रोफेसर हेनरी मॉइसन द्वारा सन् 1886 में की गई। प्रोफेसर हेनरी को उनकी उपलब्धियों के लिए सन् 1905 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पिछली शताब्दियों में फ्लोराइड से संबंधित प्रश्न प्रयोगशालाओं तक ही सीमित थे, परंतु सन् 1920 में फ्लोरीन के कई उपयोगी गुणों की खोज हुई। इसके पश्चात् आधुनिक उद्योग में फ्लोराइड अनिवार्य माना जाने लगा।

फ्लोरीन अत्यधिक सक्रिय तत्व है और अन्य तत्वों के साथ संयुक्त होने की दृढ़ क्षमता द्वारा फ्लोराइड नामक यौगिक निर्मित करता है। फ्लोराइड सभी तत्वों में सर्वाधिक विद्युत ऋणात्मक तत्व है, इसलिए यह हमारी जानकारी में सबसे मजबूत ऑक्सीकारक तत्व है। स्वतंत्र अवस्था में यह एक हल्के पीले रंग की उत्तेजक गंध वाली गैस है। इसका क्वथनांक -188 डिग्री सेल्सियस एवं हिमांक -220 डिग्री सेल्सियस है।
dental fluorosis
टेबल : राजस्थान में पेयजल संकट एवं बढ़ता फ्लोरोसिस
Posted on 09 Feb, 2014 11:48 AM

परिशिष्ट-1


सारणी-2.1 आंतरिक सतही जल बेसिन अनुसार जल प्रवाह एवं उपयोग


क्र.स.

बेसिन

प्रवाही जल

विद्यमान एवं चालू योजनाओं द्वारा प्रयुक्त प्रवाही जल

पेयजल का स्थाई एवं उचित प्रबंधन
Posted on 08 Feb, 2014 01:36 PM
दुर्भाग्यवश आज इस संपूर्ण सांस्कृतिक एवं तकनीकी परंपरा की धज्जियाँ उड़ रही हैं और इसके लिए भारत सरकार के अतिरिक्त और कोई भी उत्तरद
उभरते संकट
Posted on 08 Feb, 2014 01:11 PM
भूजल का अत्यधिक दोहन तथा उसमें अधिक मात्रा में फ्लोराइड व्याप्त होने के कारण इस क्षेत्र की स्थिति अत्यंत गंभीर है। पिछले दशक में भूजल स्तर में 6 मीटर से भी अधिक तक की गिरावट दिखाई देती रही है। अनेक व्यक्तियों के पास निजी नलकूप हैं, लेकिन पी.एच.ई.डी. द्वारा लगाए गए कैंप के दौरान की गई जाँच में इन नलकूपों का जल फ्लोराइड से दूषित पाया गया। कुछ सरकारी हैंडपंप भी हैं, जिनमें से अधिकांश के पानी में फ्लोराइड के अंश बहुत अधिक मात्रा में हैं। गाँवों के लोग जल एकत्रित करने की किसी भी पारंपरिक विधि का उपयोग नहीं कर रहे हैं। कहा जाता है कि भविष्य में जल के लिए युद्ध होंगे। कम से कम राजस्थान में तो शहरी क्षेत्रों को पानी हस्तांतरित करने पर ग्रामीण जनता द्वारा हिंसात्मक विरोध आम बात होती जा रही है।

जवाई बाँध से जोधपुर शहर को पानी दिए जाने के कारण किसानों को सिंचाई हेतु आवश्यक मात्रा में जल उपलब्ध नहीं होने से परेशानी हो रही है। निमज व आस-पास के गाँवों में ग्रामीणों ने अपने हाथों से पाइप लाइन हटा कर ब्यावर शहर को जल आपूर्ति करने हेतु गाँवों में नलकूप खोदे जाने का विरोध प्रदर्शित किया है।

वर्ष 2000-2001 में जब राजस्थान को लगातार तीसरे साल अकाल का सामना करना पड़ा, तो 200 वर्षों के इतिहास में पहली बार सबसे बड़ी मानव निर्मित झील राजसमंद पूर्णतया सूख गई। जल व्यवस्था विशेष रेलगाड़ियों द्वारा करनी पड़ी।

1. सन् 2000-2001 के अकाल के दौरान पेयजल की स्थिति एवं आपातकालीन आवश्यकताएं


राज्य के 32 जिलों में से दो में अपर्याप्त वर्षा (60 प्रतिशत या कम) तथा 21 जिलों में वर्षा का अभाव (20 प्रतिशत से 59 प्रतिशत) अवलोकित किया गया।
ग्रामीण पेयजल आपूर्ति प्रणाली पर एक नजर
Posted on 06 Feb, 2014 05:01 PM
अनेक सार्वजनिक एजेंसियों को पेयजल व्यवस्था के विभिन्न पक्षों का कार्य सौंपा गया है। राज्य भूजल विभाग तथा जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्
water
राजस्थान के जल संसाधन
Posted on 02 Feb, 2014 02:39 PM
सतही जल की कमी के कारण राजस्थान को बहुत हद तक भूजल संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। बड़ी संख्या में कुएं, बावड़ियां और झालरें प्रमुख परंपरागत जल साधन हैं। राज्य में भूजल की स्थिति भू-आकारकीय संरचना तथा भूमिगत जल धारक संरचनाओं की प्रकृति पर निर्भर करती है। भूजल विकास राजस्थान के पश्चिमी भागों की तुलना में पूर्वी भागों में अधिक है। पश्चिमी राजस्थान में भूजल पुनर्भरण अपेक्षाकृत कम है। अनिश्चित वर्षा, सतही जल संसाधनों की अनुपस्थिति तथा उच्च वाष्पोत्सर्जन इसके कारण हैं। मानव विकास हेतु जल एक सीमांत कारक है, तथा मानव के अस्तित्व हेतु अत्यंत आवश्यक है। राजस्थान में भूमि व सूर्य का प्रकाश प्रचुर मात्रा में है, परंतु उपलब्ध जल-संसाधनों के संबंध में कम भाग्यशाली है। राज्य में ऐसी कोई नदी नहीं है, जिसका उद्गम स्थल हिमपात वाले क्षेत्रों से हो। मानचित्र 3 राजस्थान की नदियों को दर्शाता है।

अधिकांश नदियां मौसमी हैं तथा इनमें बहने वाले जल की मात्रा वर्षा ऋतु के दौरान होने वाले वृष्टिपात के परिणाम पर निर्भर करती है।

सामान्यतः राज्य के पश्चिमी भाग में वार्षिक वर्षा बहुत कम होती है। प्रत्येक मानसून के दौरान राज्य के विभिन्न् भागों में एक ही समय पर अकाल व बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होना इस बात का साक्षात उदाहरण है कि सामान्यतः संपूर्ण राज्य में, और विशेषतया इसके पश्चिमी भाग में वर्षा की अवधि व मात्रा परिवर्तनशील रहते हैं।
राजस्थान – एक परिचय
Posted on 02 Feb, 2014 02:17 PM
राजस्थान एक कृषि प्रधान राज्य है। सन् 1991 की जनगणना में लगभग 70 प्रतिशत लोगों ने कृषि को अपना मुख्य व्यवसाय बताया। ग्रामीण क्षेत्
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