दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार
अवगाहन
Posted on 29 Sep, 2013 01:25 PM
वह मेरा सहजन!
हाय! वह मेरा सखा!
आज नदी में उतरता है।

उसने सब कपड़े उतारकर
किनार पर फेंक दिए,
यह सोचे बिना कि कार्तिक में कितनी ठंड होती है,
सुबह-सुबह नहाने की ठान ली।
पैनी हवाओं ने
जब उसके जिस्मको झिंझोड़ा,
तो उसने एक कदम थोड़ा पीछे हटकर उठाया।
अब वह फिर दूसरा कदम आगे धरता है।
लो, अब वह नदी में उतरता है।
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