चंडी प्रसाद भट्ट

चंडी प्रसाद भट्ट
चंडी प्रसाद भट्ट
‘पर्वत पर्वत, बस्ती बस्ती’ चंडी प्रसाद भट्ट की बेहतरीन यात्राओं का संग्रह है जिनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। अद्भुत जीवट को समर्पित चंडी प्रसाद भट्ट गांधी के विचार को व्यावहारिक रूप में आगे बढ़ाने में एक सफल जन नेता के रूप में उभरे हैं। ‘चिपको आंदोलन’ के रूप में सौम्यतम अहिंसक प्रतिकार के द्वारा वृक्षों एवं पर्यावरण के अंतर्संबंधों को सशक्तता से उभार कर उन्होंने संपूर्ण विश्व को जहां एक ओर पर्यावरण के प्रति सचेत एवं संवेदनशील बनाने का अभिनव प्रयोग किया, वहीं प्रतिकार की सौम्यतम पद्धति को सफलता पूर्वक व्यवहार में उतार कर दिखाया भी है।

23 जून 1934 को निर्जला एकादशी के दिन गोपेश्वर गांव (जिला चमौली) उत्तराखंड के एक गरीब परिवार में जन्मे श्री चंडी प्रसाद भट्ट सातवें दशक के प्रारंभ में सर्वोदयी विचार-धारा के संपर्क में आए और जयप्रकाश नारायण तथा विनोबा भावे को आदर्श बनाकर अपने क्षेत्र में श्रम की प्रतिष्ठा सामाजिक समरसता, नशाबंदी और महिलाओं-दलितों को सशक्तीकऱण के द्वारा आगे बढ़ाने के काम में जुट गए। वनों का विनाश रोकने के लिए ग्रामवासियों को संगठित कर 1973 से चिपको आंदोलन आरंभ कर वनों का कटान रुकवाया।

रूस, अमेरिका, जर्मनी, जापान, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, फ्रांस, मैक्सिको, थाईलैंड, स्पेन, चीन आदि देशों की यात्राओं, सैकड़ों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भागीदारी के साथ ही श्री भट्ट राष्ट्रीय स्तर की अनेक समितियों एवं आयोगों में अपने व्यावहारिक ज्ञान एवं अनुभव का लाभ-प्रदान कर रहे हैं। 1982 में रमन मैग्ससे पुरस्कार, 1983 में अरकांसस (अमेरिका) अरकांसस ट्रैवलर्स सम्मान, 1983 में लिटिल रॉक के मेयर द्वारा सम्मानिक नागरिक सम्मान, 1986 में भारत के माननीय राष्ट्रपति महोदय द्वारा पद्मश्री सम्मान, 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा ग्लोबल 500 सम्मान, 1997 में कैलिफोर्निया (अमेरिका) में प्रवासी भारतीयों द्वारा इंडियन फॉर कलेक्टिव एक्शन सम्मान, 2005 में पद्म भूषण सम्मान, 2008 में डॉक्टर ऑफ साईंस (मानद) उपाधि, गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर, 2010 रियल हिरोज लाईफटाईम एचीवमेंट अवार्ड सी.एन.एन. आई.बी.एन, -18 नेटवर्क तथा रिलाईंस इंडस्ट्रीज द्वारा सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। 77 वर्ष की उम्र के बावजूद भी उनमें उत्साह किसी नौजवान से कम नहीं है।

क्या किया जा सकता था और क्या किया जाना चाहिए !
विकास के नाम पर सरकार और सरकारी मशीनरी के संरक्षण में देश के पूंजीपति देश की पर्यावरण संपदा के लुटेरे बन गये हैं। तथाकथित विकास का यह विध्वंसक रथ जिधर भी जाता है, प्रकृति और पर्यावरण का विनाश करता जाता है। विकास के नाम पर विनाश का ताजातरीन उदाहरण उत्तराखंड का ऐतिहासिक नगर जोशीमठ, इसी विकास की चपेट में कराह रहा है। क्या किया जा सकता था और क्या किया जाना चाहिए, पढ़ें चिपको आंदोलन के संस्थापकों में से एक चंडी प्रसाद भट्ट का यह विशेष लेख
Posted on 21 Oct, 2023 11:20 AM

ऐसा लगता है कि बहस बहुत सीमित दायरे में हो रही है। वर्तमान आपदा ने हमें विचार-विमर्श तथा मंथन के लिये विवश किया है। राज्य व्यवस्था अपनी स्वाभाविक जिम्मेदारी, जो उत्तराखंड़ जैसे पर्वतीय राज्य में और भी केन्द्रीय हो जाती है, से यह विचार विकसित नहीं कर सकी है। पुरानी कहानी छोड़ दें तो भी नये राज्य को जन्मे 22 साल होने जा रहे हैं। इस बीच राज्य के पारिस्थितिक इतिहास को ठीक से पढ़ लिया जाना चहिये था।

केदारनाथ आपदा
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