भाष्करानन्द डिमरी

भाष्करानन्द डिमरी
स्वच्छ जल स्वस्थ जीवन
Posted on 02 Feb, 2016 03:39 PM

अति लोभी-भोगी मानव ने किया प्रकृति का निर्मम प्रहार।
अनगिनत वृक्षों को काट उसने सुखा दी निर्मल जलधार।।

कैसे बुझेगी मनुज की प्यास कैसे बंधेगी जीवन की आस।
जंगलों को उजाड़ कर मनुज कर रहा स्वयं अपना विनाश।।

उद्योगों के दूषित द्रव से हो गई गंगा - यमुना भी मैली।
रोगनाशिनी पुण्य प्रदायिनी स्वच्छ धार बन गई आज विषैली।।
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