अविनाश श्रीवास्तव

अविनाश श्रीवास्तव
इस मानसून, अब हमारी बारी
Posted on 29 Jan, 2018 01:07 PM

पेड़ों, पहाड़ों, नदियों की आराधना करने वाले हम प्रकृति से दूर हो गये हैं। प्राकृतिक स्रोतों का हर पल आभार मानना हमने छोड़ दिया है। जीवनशैली इतनी कैसी बदल सकती है कि जीवन की ही अवहेलना होने लगे? बहुत समय हो गया प्रकृति से लेते-लेते, अब एहसान चुकाने की बारी हमारी है।
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