अनिल अंशुमन

अनिल अंशुमन
अन्न से जन पानी से धन
Posted on 16 Feb, 2016 12:59 PM

सिमोन के गाँव समेत आस-पास के कई गाँवों के एक हजार एकड़ जमीनों पर जहाँ पानी के अभाव में साल में धान की एक खेती भी ठीक से नहीं हो पाती। अब धान के अलावा गेहूँ, सब्जियाँ, सरसों, मक्का इत्यादि की कई-कई फसलें होने लगी थीं। कुछ ही सालों में न केवल देसावाली, गायघाट, अम्बा झरिया नाम से तीन बाँध बनाए गए, बल्कि कई छोटे तालाब और दर्जनों कुएँ खोद डाले गए। सब-के-सब गाँव वालों के ही जमीन और पैसों से। बाद में रस्म अदायगी के तौर पर कुछ सरकारी मदद भी मिली। सिमोन उरांव का सपना साकार होने में उनके दृढ़ निश्चय और कठोर लगन के साथ-साथ गाँव-समाज के लोगों की सपरिवार पूरी भागीदारी रही।

अन्न है तो जन है, पानी है तो धन है’। ये किसी सरकारी प्रचार का नारा या किसी नेता का जुमला नहीं है। बल्कि 83 साल के उस आदिवासी किसान सिमोन उरांव की जिन्दगी का सच है। जिसे उन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी लगाकर हासिल किया है। आज भी वे चुस्त-दुरुस्त और जिन्दादिल अन्दाज में कभी ग्रामीणों का जड़ी-बुटियों से इलाज करते हुए तो कभी खेतों में काम करते हुए या गाँव-समाज की बैठकों में लोगों की समस्याओं का निराकरण करते हुए देखे जा सकते हैं।

उन्होंने अपने मजबूत इरादों और अकल्पनीय परिश्रम पराक्रम के बूते पहाड़ पर पानी पहुँचाकर सैकड़ों एकड़ बंजर भूमि को सचमुच में फसलों की हरियाली से भर दिया है। हर साल बरसात में पहाड़ से गिरकर व्यर्थ बह जाने वाले पानी को न सिर्फ बड़े जलाशयों में इकट्ठा किया, बल्कि अपने दिमागी कौशल से छोटी-छोटी नहरें बनाकर सैकड़ों फीट ऊपर पानी पहुँचाकर दर्जनों गाँव के किसानों को सालों खेती-किसानी का साधन उपलब्ध कराया।
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