आलोक श्रीवास्तव

आलोक श्रीवास्तव
एक निर्जन नदी के किनारे
Posted on 05 Dec, 2013 10:50 AM
मैं जानता हूं
तुम कुछ नहीं सोचती मेरे बारे में
तुम्हारी एक अलग दुनिया है
जादुई रंगों और
करिश्माई बांसुरियों की

एक सुनसान द्वीप पर अकेले तुम
आवाज देती हो
जल-पक्षियों को
एक निर्जन नदी के किनारे में
कभी अंजलि भरता हूं
बहते पानी से
कभी बालू पर लिखता हूं वे अक्षर
जिनसे तुम्हारा नाम बनता है

जमा होती गई हैं मुझमें
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