धरती को आपकी जरूरत है, इसे बचाएँ
आज देश और दुनिया की पहली चिंता है- बिगड़ता पर्यावरण। हाल में संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण समिति ने इस बात की आशंका जताई है कि अगर आज की गति से ही जंगल कटते रहे, बर्फ पिघलती रही तो शायद पचास सालों में दुनिया के कई निचले इलाके डूब जाएंगे। यही हालत रही तो सौ सालों में मालदीव, मॉरीशस सहित भारत के मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे शहर भी पानी में डूबकर विलुप्त हो सकते हैं। इस मामले में सरकारें अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं, लेकिन अब भी आम आदमी में जागरूकता नहीं आई है। लोग पर्यावरण बचाने में अपनी भूमिका को नहीं पहचानते। वे सोचते हैं- मैं कर ही क्या सकता हूं? पर अगर कोई वास्तव में कुछ करना चाहे तो किसी का मुंह देखने की जरूरत नहीं है।
यदि धरती पर पर्यावरण का संकट बरकरार रहा, तो समुद्र में जीवन खत्म हो जाएगा। इसकी वजह है महासागरों के गहरे पानी में कम होती आक्सीजन। यह कुछ वैसा ही नजारा होगा जैसा हजारों साल पहले समुद्र में ज्वालामुखी फटने पर हुआ होगा। महासागरों के अध्ययन बता रहे हैं किसमुद्र में डैड जोन बनते जा रहे हैं। कैसे बनते हैं डैड जोन : धरती पर अनाज उपजाने के लिए उर्वरकों का जमकर उपयोग किया जाता है। मिट्टी में मिले ये रासायनिक उर्वरक नदियों में मिलकर समुद्र में पहुंचते हैं। जिनसे समुद्र की वनस्पति और जीव-जंतु नष्ट होते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट होता है। तब डेड जोन बनता है। पूरी दुनिया के सागरों और महासागरों में में ऐसे 400 डैड जोन बन चुके हैं। कमी आक्सीजन की : एक और बड़ा खतरा है महासागरों में तेजी से आक्सीजन का कम होना। विशेषज्ञों की राय में इस सदी के अंत तक महासागरों में घुली हुई आक्सीजन के स्तर में 7 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। महासागरों में आक्सीजन केवल बारिश पानी से पहुंचती है। बरसात का पानी या तो धरती में विलीन हो जाता है या समुद्री जलधाराओं में प्रवाहित होकर गहरे महासागरों तक पहुंचता है। जलवायु परिवर्तन के चलते ये दोनों प्रक्रियाएं प्रभावित हो रही हैं। समुद्र की सतह का जल गर्म होकर हल्का हो जाता है और इस प्रक्रिया में पानी में से आक्सीजन निकल जाती है। आक्सीजन की कमी पानी में रहने वाले जीवन को नष्ट करता है।
ग्लोबल वार्मिग से तेजी से बढ़ रहे हैं पेड़
लंदन। ग्लोबल वार्मिग के कारण उत्तरी अमरीका में पेड़ों के विकास पर असर पड़ा है और पिछले 200 सालों की तुलना में सबसे तेज गति से बढ़ रहे हैं। स्थानीय अखबार द इंडिपेंटेंड में छपी एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लोबल वार्मिग पेड़ों के विकास को नियंत्रित कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरी गोलार्द्ध में पेड़ों के विकास पर ग्लोबल वार्मिग का असर देखा जा सकता है। यहां पर वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा काफी अधिक है और जिसके कारण पेड़ों का विकास तीव्र गति से हो रहा है। वैज्ञानिकों ने दुनिया के सबसे पुराने पेड़ों के विकास का अध्ययन कर यह नतीजा निकाला है। अध्ययन में 55 क्षेत्रों में लगाए गए तरह-तरह के पेड़ों के विकास का 25 वर्षो तक अवलोकन किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि इन पेड़ों का विकास पिछले 200 सालों की तुलना में सबसे अधिक रहा। स्मिथसोनियन पर्यावरण अनुसंधान केन्द्र के वन्य वैज्ञानिक जियोफ्रेपार्कर के अनुसार उत्तरी अमरीका में पेड़ों की विकास दर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो उच्च तापमान और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का अधिक मात्रा के कारण ही संभव है। पार्कर ने बताया कि सहयोगियों के साथ मिलकर उन्होंने 1987 से ही विभिन्न क्षेत्रों में पेड़ों के विकास का मापन करना शुरू किया था। उन्होंने बताया कि इस दौरान पेड़ों के विकास में अपेक्षा से कहीं अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई।
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